श्री देवरहा हंस बाबाजी महाराज का असीम करुणा-वितान

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Aanandlahari said...

संतोंके सहवासमे रहना सबके नशिब नही होता परंतु जिनके नशिब होता है उन्हेभी बहुत कम तौरपर यह समजा जाता है क्योंकी सद् गुरू हमे निरंतर अनेकानेक रूपोंमे हमारे पास आत्ते रहते है अौर निरंतर हमे सिखाते रहते है, कभीही हमसे जुदा नही होते है, इस दुनियासे उनका चला जाना सामान्य व्यक्तिको बहुत दुःख:दायक लगता है पर संतोंका दुनियामे आना जाना निरंतर चलताही रहता है, हमे खाली उन्हे पहचाननेकी समज चाहिये, जो केवल उनके शिष्योत्तमोमेही होती है इसलिए उन्हे शिष्योत्तम कहा जाता है नाही उन जिन्होंने वेदविद्या पारंगत की है।