मन भावन लागे मचान ,
प्यारे बाबा का |
नारायण जहँ स्वयं विराजें |
धर साधु रूप महान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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मंच की झाँकी ऐसी लागे |
जैसे शय्या शेष समान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन लागे मचान
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नारायण की वाणी निकले |
जो कर जग का कल्याण , प्यारे बाबा का ||
मन भावन लागे मचान .........................
पर्णकुटी में राम विराजें |
जो देते सदा अभयदान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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मंच लगे जैसे कदम की डाली |
जहँ छेड़े मोहन तान ,
प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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पार्थ रथ सम मंच है लागे |
जहँ बरसे गीता ज्ञान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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मंच लगे जैसे कैलाशा |
जहँ बैठे शम्भु सुजान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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मुक्त हस्त से बाँटा करते |
भक्ति , प्रसाद और ज्ञान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन .........................
फसलों की ज्यों रक्षा करते |
मंच से चतुर किसान ,
प्यारे बाबा का ||
त्यों भक्तों की रक्षा करते
|
बाबा श्री हनुमान , प्यारे बाबा का ||
मन भावन
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रचना :- ओम प्रकाश सिंह
बाबा कुटी , १७३ , आनन्दपुरी , पटना – १
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